धर्म और मजहब की खिड़कियों से बाहर अमन का रस घोलता एक नाम है नाज़नीन अंसारी। नाज़नीन शरीर पर बुर्का पहनती है। उनका मजहब इस्लाम है लेकिन उनकी जुबां पर हर समय राम का नाम रहता है। हिंदू धर्म के प्रति उनका सम्मान मंदिर-मस्जिद के बीच के फर्क को मिटाने का काम करता है। बता दें, इस से पहले नाज़नीन अंसारी हनुमान चालीसा और दुर्गा चालीसा का उर्दू में अनुवाद कर चुकी हैं।

बनारस में संकटमोचन ब्लास्ट के बाद सांप्रदायक सौहार्द बिगड़ने लगा था। उस वक्त नाजनीन ने अमन और भाईचारे के लिये सबसे मुश्किल भरा फैसला किया। उन्होंने रामकथा को मुस्लिम समुदाय को समझाने के लिये रामचरित मानस के उर्दू अनुवाद की शुरुआत की।

नाजनीन का मानना है कि राम के खिलाफ पूरे देश में बोलने वालों को ये समझाने की जरूरत है कि श्रीराम हमारे पूर्वज थे। मुल्क में उस बहस को नाज़नीन ने बेमानी साबित कर दिया जहां लोग कहते हैं कि राम किसके हैं या राम मेरे हैं।

नाज़नीन धर्मांतरण के खिलाफ हैं। उनका मकसद सांप्रदायिक एकता को बढ़ाना है तो साथ ही वो गरीब मुस्लिम महिलाओं की तालीम के लिये भी कोशिश कर रही हैं।नाज़नीन ने अपने बचपन को गरीबी में बिखरते देखा था। गुर्बत के दौर की वजह से पढ़ाई तक छोड़नी पड़ गई थी। लेकिन अब नाज़नीन गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं। वो चाहती हैं कि उनके पढ़ाए हुए बच्चे राष्ट्रवादी बनें।

नाज़नीन की सोच को हमारा सलाम

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