हालांकि भारत सरकार ने 1950 में पाकिस्तान जा चुके लोगों की संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित कर अपने कब्जे में ले लिया था, लेकिन इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी रिकॉर्ड में पाकिस्तानियों का नाम दर्ज होने के साथ ही ऑनलाइन डाटा फीडिंग में भी उनका नाम दर्ज होना प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान है। पाकिस्तान का नाम दर्ज होने के बावजूद राजस्व विभाग के अफसरों ने अपनी मुहर लगाने के साथ ही इस खतौनी को कलक्ट्रेट दफ्तर भेज दिया।

बता दें कि खतौनी को ऑनलाइन फीड करते समय भी अफसरों ने इसे जांचने की जहमत नहीं उठाई। जिलाधिकारी जुहैर बिन सगीर ने बताया कि यह बहुत गंभीर मामला है। जांच कराकर इस संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित करने के साथ सरकारी खाते में दर्ज करने की कार्रवाई की जाएगी।

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