भागदौड़ भरी दुनिया में आधुनिकरण की वजह से विशेष अवसरों पर लगने वाले मेले जैसे खत्म ही हो गए हैं। इनकी जगह आजकल बड़े बड़े मॉल लेकर बैठ गए हैं। कुश्ती का मज़ा, बड़े बड़े झूलों का रोमांच अब बामुश्किल ही देखने को मिलता है। लेकिन खगडिय़ा (सन्हौली) के गोशाला मेला में आज भी पुरानी यादें ताज़ा हो जाती हैं। यह मेला यहाँ होने वाले विशेष दंगल के लिए भी काफी मशहूर है। इस दंगल की खासियत यह भी है कि महिला और पुरुष प्रतिभागी एक दूसरे से दो दो हाथ करते हैं। आज हम आपको यहां के कुछ खास पहलुओं से अवगत कराते हैं।

 

यहा जगह गंगा और कोसी के संक्रमण क्षेत्र में स्थित है। इधर  कुश्ती खुद गोशाला का अखाड़ा पिछले 128 साल पुरानी है। नदियों से घिरी भौगोलिकी और रहन-सहन के चलते कुश्ती यहां की आबोहवा में समाई हुई है। यही वजह है कि यहां हर गांव अपनी खास पहलवानी परंपरा को जीवित रखे हुए है। हर वर्ष गोशाला के अवसर पर इन गांवों की परंपराओं का सम्मिलन होता है। दूसरे जिले और राज्य से भी पहलवान आते हैं। छठ के अगले दिन से लगने वाले इस आठ दिनी मेले में पांच दिन अखाड़े सजते हैं। श्रीकेसरी नंदन व्यायामशाला की देखरेख में प्रतियोगिता होती है। यही वह अवसर होता है जब नए पहलवान दाव-पेंच की बारीकियां सीखते-समझते हैं और शहर व दूर-दराज के गांवों से आए लोग भरपूर मनोरंजन का लुत्फ उठाते हैं। दंगल में पुरुष और महिला वर्ग में विभिन्न आयु वर्गों की अलग-अलग प्रतियोगिता होती है।

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