जानिए कोलकाता की दुर्गा पूजा की विशेषताएं

जानिए कोलकाता की दुर्गा पूजा की विशेषताएं

कोलकाता का असली रूप दुर्गा पूजा के समय ही दिखाई देता है। कोलकाता को सिटी ऑफ ज्वॉय कहा जाता है। असल माइने में ये शहर त्योहारों का, आनंद का शहर है। दुर्गा पूजा के दौरान हर कोई जात-पात भूलकर, उम्र की सीमा को पार कर बस पंडालों में इस पूजा का लुत्फ उठाते नजर आते हैं। इन दिनों बड़े, बुढ़े ,युवा और महिलाएं हर कोई पंडालों की सैर करते नजर आते हैं, सारे काम-काज भूल कर वे बस मां की आराधना में जुट जाते हैं।

दरअसल, बंगाल में पूजा का मतलब केवल पूजा, आराधना या मां को याद करना ही नहीं है, बल्कि पूरे साल के सारे दुख-दर्द और गम भूलाकर मस्ती करने का वक्त है। इस त्योहार में परिवार के सभी लोग एक साथ मां का आप्पायन करते हैं। उनका आदर-सम्मान करके घर में ही उनकी स्थापना भी करते हैं।

दुल्हन की तरह सजता है ये शहर

कोलकाता के हर कोने में, उत्तरी कोलकाता से दक्षिण तक। नाकतला से बेहाला तक, बागबाजार, श्यामबाजार, कोलकाता की हर गली में एक पंडाल जरूर होता है। कई लोग अपने घर में ही मां की स्थापना करते हैं और 9 दिन तक घर में उनकी पूजा होती है।

चोक्खू दान

एक – दो महीने पहले से ही कोलकाता में पूजा की तैयारिय़ां शुरू हो जाती है। कई खास तरीकों से पूजा पंडाल बनाए जाते हैं। प्रथमा के दिन मां को रंग चढ़ता है और ऐसे ही हर दिन खास होता है। ये सिलसिला नवमी तक चलता रहता है। लेकिन नवरात्रि शुरू होने से एक हफ्ते पहले दुर्गा मां की प्रतिमा तैयार हो जाती है, लेकिन उनकी आंखें रह जाती हैं। महालया के दिन देवी की आंखें तैयार की जाती हैं। इसे चोक्खू दान कहते हैं। आंखें दान। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन देवी धरती पर आती है।

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