मर्दानगी की दवा बेचने वालों सावधान, अब लैब में तैयार होंगे शुक्राणु , मनुष्य के शरीर में जवान होने के साथ ही वीर्य बनना शुरू हो जाता है, लेकिन वे लोग जिनमें वीर्य की कमी होती है, को विज्ञान द्वारा बनाया कृत्रिम वीर्य दिया जा सकता है। पुरुष के प्रजनन अंगों (विशेषकर अन्डकोशों में) में बनने वाला कोशाणु (जो स्त्री के अंडे से मिलकर शिशु को जन्म देता है) शुक्राणु कहलाता है। इस तरल में ही वीर्य मौजूद रहता है और वीर्य में शुक्र और शुक्र में होतें हैं शुक्राणु। एक अनुमान के अनुसार भारत में 15% दम्पति संतानहीन हैं। जिनमें संतानहीनता के लिए साढ़े सात फीसदी के लिए मर्द उत्तरदायी हैं।

जवान होने के साथ ही मनुष्य के शरीर में वीर्य बनना शुरू हो जाता है। गर्भधारण के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज है पर्याप्त स्पर्म काउंट। स्पर्म की कमी से गर्भधारण करना व कराना दोनों संभव नहीं। लेकिन खराब जीवनशैली, अनुवांशिक कारणों ,शराब का सेवन, धूम्रपान व नशा आदि एधिक करने से लोगों में स्पर्म काउंट कम हो जाता है। हालांकि कृत्रिम स्पर्म का निर्माण व स्पर्म की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। तो चलिये जानते हैं कि वीर्य की कमी को पूरा और इसकी गुणवत्ता में सुधार कैसे किया जा सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक निर्देशों के अनुसार दो मिलीलीटर सिमेन वोल्यूम में स्पर्म की तादाद (स्पर्म काउंट) दो करोड़ (20 मिलियन) होनी चाहिए। अब से 10-20 साल पहले तक यही मानक 4-5 करोड़ प्रति दो मिलीलीटर रखा गया था। यही स्पर्म हेल्थ का मानक भी था।

विशेषज्ञों के अनुसार स्पर्म हेल्थ के लिए तीन चार बातें अहम होती हैं जिन पर गौर किया जाता है, जैसे स्पर्म काउंट (शुक्र तादाद /प्रति इजेक्युलेट), मोटिलिटी (गति अथवा गत्यात्मकता, मूवमेंट), आकृति विज्ञान (शुक्र का आकार और बनावट/बुनावट) तथा टोटल वोल्यूम ऑफ़ इजेक्युलेट (प्रति स्खलन वीर्य का आयतन) आदि।

पुरुषों में चालीस की उम्र के पार स्पर्म के डीएनए टूटने लगते हैं। इस फ्रेगमेंटेशन के फलस्वरूप स्पर्म के गर्भाधान कराने, औरत को गर्भवती की संभावना कम होने लगती है। आजकल तीस के पार भी पुरुषों में स्पर्म की सेहत को लेकर समस्याएं आने लगतीं हैं।

वैज्ञानिकों स्टेम कोशिकाओं के जरिए कृत्रिम वीर्य तैयार कर चुके हैं। ‘द डेली टेलीग्राफ’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक जापान के क्योतो विश्वविद्यालय की एक टीम ने प्रयोगशाला में वीर्य पैदा करने वाली जनन कोशिका तैयार की और इन्हें प्रजनन में अक्षम चूहे में स्थानांतरित कर दिया गया। उपचार के बाद यह चूहा प्रजनन में सक्षम हो गया।

वैज्ञानिकों ने स्किन सेल्स अर्थात त्वचा कोशिकाओं से भी शुक्राणु और अंडे बनाए हैं। जापान में शोधकर्ताओं ने एक वयस्क चूहे की त्वचा कोशिकाओं से प्रयोगशाला में विकसित अंडे और शुक्राणु की मदद से सफलतापूर्वक दूसरे चूहों की नस्ल पैदा किया था।

इंट्रा साइटोप्लाज़्मिक स्पर्म इंजेक्शन (आईसीएसई), आईवीएफ की वह तकनीक है, जिसका प्रयोग अंडों की संख्या कम होने पर किया जाता है। या फिर तब जबकि शुक्राणु, अंडाणु से क्रिया करने लायक बेहतर अवस्था में नहीं होते। इसमें माइक्रोमेनीपुलेशन तकनीक द्वारा शुक्राणुओं को सीधे अंडाणुओं में इंजेक्ट कराया जाता है।

वैज्ञानिकों ने हाल ही में पहली बार धातु नैनोट्यूब के अंदर शुक्राणु कोशिकाओं को फंसाकर तथा दूर से चुंबक की मदद से उनकी दिशा को नियंत्रित कर  एक शुक्राणु आधारित बायोबोट्स (स्पर्म-बेस्ड बायोबोट्स) का निर्माण किया।

माइक्रो टेस्ट से बांझ पुरुषों को इलाज द्वारा पिता बनने योग्य बनाया जा रहा है। जिस व्यक्ति के स्पर्म में शुक्राणु कम होते हैं, उसे हाई मैग्निफिकेशन की प्रक्रिया से गुजारा जाता है, जिसके बाद बेकार शुक्राणुओं को बाहर निकाल दिया जाता है।

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