यूं तो पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती लेकिन जब बेटा 12वीं की बोर्ड परीक्षा दे रहा हो तब उसी के साथ एक ही कमरे में मां-बाप भी बोर्ड परीक्षा दे तो ये और लोगों का भी हौसला बढ़ाता है। साथ ही इस बात को भी बल देता है कि आप जब चाहें तब सफलता आपके कदम चूम सकती है। लेकिन ऐसे उदाहरण देखने को कम ही मिलते है। पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के उत्तर पतिकबाड़ी गांव के रहने वाले बलराम मंडल अपनी पत्नी कल्याणी मंडल ने ये सच करके दिखाया है।

बुधवार 15 मार्च से 12वीं बोर्ड की परीक्षाएं शुरू हुई और बिपलब मोंडल के साथ ही उसके माता-पिता भी इस परीक्षा में शामिल हो रहे हैं। विप्लव ने बताया कि भले ही हमारे घर में मां-बेटे व बाप -बेटे का रिश्ता है लेकिन परीक्षा हॉल में हम प्रतिस्पर्धी है। सबसे खास बात यह है कि मां-बाप व बेटे ने 12 वीं की इम्तिहान अंग्रेजी, इतिहास, शिक्षा , संस्कृत व दर्शनशास्त्र विषय रखा था। विप्लव मंडल के मां-पिता दो साल से नियमित रूप से स्कूल भी जा रहे थे।

बलराम कहते हैं, ‘मैंने कक्षा 8 के बाद स्कूल छोड़ दिया था। पिता के निधन के बाद घर चलाने की जिम्मेदारी आ गई और काम में लग गया। जब हमारे बेटे ने स्कूल जाना शुरू किया तो मेरे और मेरी पत्नी, हम दोनों के मन में यह बात आयी कि हमें भी अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करनी चाहिए। 2014 में मैंने रबींद्र भारती ओपन यूनिवर्सिटी से माध्यमिक यानी 10वीं की परीक्षा पास की थी। उसके अगले साल 2015 में मेरी पत्नी ने माध्यमिक की परीक्षा पास की। जब हमारे बेटे ने भी माध्यमिक की परीक्षा पास कर ली तो हमने फैसला किया कि अब हम 12वीं की परीक्षा अपने बेटे के साथ ही देंगे। चूंकि हमारी उम्र ज्यादा थी इसलिए कई स्कूलों ने हमें ऐडमिशन देने से इनकार कर दिया। आखिरकार अरोंगघाटा हजरापुर स्कूल में हमें ऐडमिशन मिला।’

स्कूल के हेडमास्टर ने कहा, ‘हमें बोर्ड के नियमों के बारे में पता नहीं था। हमारे स्कूल के सेवानिवृत्त क्लर्क बुद्धदेव हल्दर माध्यमिक शिक्षा परिषद के दफ्तर गए और तब उन्हें पता चला कि ऐसे उम्मीदवार जो ओपन यूनिवर्सिटी से माध्यमिक की परीक्षा पास कर चुके हैं वह हायर सेकंड्ररी एग्जाम यानी 12वीं की परीक्षा में बैठ सकते हैं। बिपलब के माता-पिता का शिक्षा के प्रति उत्साह देखकर मुझे बहुत खुशी हुई और मैंने उनपर अतिरिक्त ध्यान दिया।’

इस बारे में बिपलब कहता है, ‘मैंने अपने माता-पिता को पढ़ाया। वे लोग अंग्रेजी भाषा में कमजोर थे। इसलिए हमारे एक पड़ोसी ने उन्हें अंग्रेजी की शिक्षा दी।’ बिपलब की मां कल्याणी कहती हैं, ‘सरकार की योजना सबुज साथी के तहत हमें स्कूल की तरफ से साइकल मिली हुई है। हम तीनों हफ्ते में 4 दिन एक साथ स्कूल जाया करते थे। हमें कई बार स्कूल में बेईज्जत भी किया गया लेकिन इन सब बातों को कभी भी हमने गंभीरता से नहीं लिया।’

स्थानीय विधायक समीर पोद्दार कहते हैं, ऐसे लोग जिन्हें किसी न किसी वजह से शिक्षा से दूर होना पड़ा, उन्हें इस परिवार से सीखना चाहिए। अगर कोई शिक्षा हासिल करना चाहता है तो हम हमेशा उसकी मदद के लिए तैयार हैं। बलराम कहते हैं कि उनके कई रिश्तेदार पढ़े लिखे हैं और अलग-अलग कॉलेजों में प्रफेसर हैं। लेकिन वे लोग बलराम के परिवार को नजरअंदाज करते हैं क्योंकि वे अधिक शिक्षित नहीं है। यही वजह है कि बलराम ने अपनी शिक्षा को गंभीरता से लिया क्योंकि वह उन सबको दिखाना चाहते हैं कि वह क्या कर सकते हैं।

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