रियो ओलंपिक्स 2016 अपने शबाब पर है और खिलाड़ी अपने हैरतंगेज़ करतबों से कामयाबी के झंडे गाड़ रहे हैं।लेकिन आपने खिलाड़ियों की एक बात पर कभी ध्यान दिया है कि जब किसी खेल में कोई खिलाड़ी सर्वप्रथम आता है और उसे स्वर्ण पदक से नवाज़ा जाता है तो वो मेडल को अपने दांतों से दबाता है? कभी सोचा आखिर खिलाड़ी ऐसा क्यों करते हैं?
दरअसल अपना पदक अपने दांतों तले दबाने की शुरुआत हुयी एथेंस में हुए पहले ओलंपिक्स से, जहां पहली बार खिलाड़ियों को ऐसा करते देखा गया था। हालांकि ये प्रसिद्द प्रथा 1912 में स्टॉकहोल्म में हुए ओलंपिक्स में बंद हो गयी थी।
1912 ओलंपिक्स से पहले इन प्रतिष्ठित मेडल्स में इस्तेमाल हुआ सोना 100 प्रतिशत खरा होता था | जी हां, आपने बिल्कुल सही सुना 100 प्रतिशत खरा सोना, लेकीन अब मिलावट के इस दौर में 2016 ओलंपिक्स के स्वर्ण पदक में इस्तेमाल हुआ सोना होता है सिर्फ 1.34 प्रतिशत खरा।
दरअसल असली सोने की पहचान करने का एक पारंपरिक तरीका उस पर दांत लगाने से उस पर पड़े निशान से हो जाता है इसी बात के चलते खिलाड़ी अपने स्वर्ण पदक को दांतों तले दबाते हैं। कहा जाता है कि खिलाड़ी जीत के बाद स्वर्ण पदक तुरंत अपने दांतों तले दबाते हैं जिससे उन्हे सोने के असली नकली होनी का पता चल सके।
वाकई काफी चौकाने वाली बात है पदक विजेताओं को ओलंपिक जैसे स्वर्ण पदक की असलियत पर भरोसा नहीं है, या ये कहें की मिलावट कि इस दुनियां में ऐसा करने में कोई परहेज़ नहीं।