इसी साल मई में हैदराबाद शहर के पुराने हिस्से में रहने वाली असिमा नाम की एक महिला की मौत हो गई। आरोप है कि सऊदी में जिस शख्स के यहां वह काम करती थी, उसने असिमा पर इतना जुल्म किया कि वह मर गईं। तेलंगाना सचिवालय के NRI विभाग ने इस सिलसिले में रियाद स्थित भारतीय दूतावास को लिखा। भारतीय दूतावास तो असिमा की लाश को सऊदी से वापस भारत लाने में नाकामयाब रहा, लेकिन एक स्वयंसेवी संगठन ने इसमें मदद की और आखिरकार आसिमा की लाश 20 मई को हैदराबाद भेज दी गई। ताहिर बताते हैं, ‘इस काम में कम वक्त लगा। कई ऐसे मामले में हैं जहां 8 महीने से भी ज्यादा समय से लाशें मुर्दाघर में पड़ी हैं, लेकिन उन्हें भारत नहीं लाया जा सका है।’
सऊदी के नियमों के मुताबिक, अगर किसी की मौत हादसे में हुई है, तो 40 दिन बाद ही उसकी लाश उसके देश में भेजी जा सकती है। ताहिर ने बताया, ‘चूंकि यह प्रक्रिया इतनी लंबी और जटिल है, इसीलिए काफी वक्त लग जाता है। एक महिला अपने मरे हुए बेटे को लेने यहां आईं थीं, लेकिन मजबूरी में उन्हें उसे यहीं दफनाना पड़ा।’ अगर किसी की मौत हत्या के कारण हुई हो, तो स्थानीय अधिकारी बिना जांच खत्म किए लाश को नहीं भेजते हैं। ऐसे मामलों में 60-90 दिन से ज्यादा समय लग जाता है। कई मामलों में ऐसा होता है कि किसी कंपनी या शख्स के यहां नौकरी कर रहे व्यक्ति की मौत के बाद उसे नौकरी देने वाला लाश को भेजने का खर्च उठाने से इनकार कर देता है। ऐसे में भी काफी मुश्किल खड़ी हो जाती है। लाश वापस भेजने में 4 से 6 लाख का खर्च आता है, इसीलिए लोग अपने कर्मचारियों का शव वापस भेजने में दिलचस्पी नहीं लेते।