अब कंपनियां महिलाओं को रोक सकेंगी हिजाब पहनने से, कोर्ट का फैसला , यूरोपीय संघ (ईयू) की शीर्ष अदालत यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस ने एक ऐतिहासिक फैसले में कंपनियों को दफ्तर में हिजाब समेत अन्य तरह के धार्मिक प्रतीक चिह्नों के पहनने पर पाबंदी का अधिकार दे दिया है।
कोर्ट के अनुसार, उस वक्त कंपनी में राजनीतिक या धार्मिक परिधान पहनने पर अलिखित पाबंदी थी। वर्ष 2006 में समीरा ने कंपनी प्रबंधन से संपर्क कर हिजाब पहन कर आने की इच्छा जताई, लेकिन कंपनी ने इसकी इजाजत नहीं दी थी।
घटना के बाद जी4एस ने इसे औपचारिक तौर पर प्रतिबंधित कर दिया। समीरा को नौकरी से भी निकाल दिया गया था। समीरा ने कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कंपनी पर भेदभाव का आरोप लगाया था। अब अपने निर्णय में ईसीजे ने कहा कि यूरोपीय संघ के कानून के मुताबिक धार्मिक आधार पर भेदभाव प्रतिबंधित है।
लेकिन जी4एस का कदम सभी कर्मचारियों के साथ समान व्यवहार करने के आधार पर उठाया गया था। लिहाजा, कंपनी के नियम-कायदे बिना किसी भेदभाव के सभी कर्मचारियों के लिए समान हैं कि वे तटस्थ परिधान में कार्यालय आएं।
कोर्ट ने इसे प्रत्यक्ष भेदभाव मानने से इन्कार किया है। इस तरह कार्यालय में हिजाब पर रोक को जायज ठहराया गया है। ईसीजे ने मंगलवार को यह फैसला दिया। यह निर्णय ऐसे वक्त आया है, जब दुनिया भर में कार्यस्थल पर धार्मिक खासकर इस्लामिक प्रतीक चिह्नों (हिजाब या नकाब) के इस्तेमाल पर बहस छिड़ी है। ऑस्ट्रिया तो सार्वजनिक स्थलों पर नकाब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है।
कोर्ट ने कहा कि किसी कंपनी की आंतरिक नीति में राजनीतिक या धार्मिक चिह्नों पर रोक प्रत्यक्ष भेदभाव नहीं है। मामला वर्ष 2003 का है। मुस्लिम महिला कर्मचारी समीरा अचबिता बेल्जियम में सिक्योरिटी कंपनी जी4एस में रिसेप्शनिस्ट के तौर पर काम करती थीं।