स्टेट लेवल की रेसलिंग चैंपियनशिप बेशक कोई नेशनल न्यूज नहीं है। लेकिन 17 साल का कोई ट्रंसजेंडर कुश्ती कर के गोल्ड मेडल जीतता है तो उसे अखबार के कवर पेज पर जरूर आना चाहिए। वैसे बात बस गोल्ड मेडल की ही नहीं है। बात इस 17 साल के ट्रांसजेंडर के ‘जेंडर’ की है। इस ट्रांसजेंडर पहलवान का नाम मैक बेग्से है जो पैदा तो ‘फीमेल’ हुई लेकिन पिछले साल अपना जेंडर चेंज करावा लिया था। इस ट्रांसजेंडर पहलवान ने 49 किलो वर्ग की टेक्सस ‘गर्ल्स स्टेट चैंपियनशिप’ में जीत हासिल की और गोल्ड मेडल जीता। हालांकि इसने पहले लड़कों के खिलाफ ही कुश्ती लड़ने की मांग रखी थी लेकिन प्रशासन ने मना कर दिया। क्योंकि राज्य के खेल नियमों के अनुसार वह जिस जेंडर के साथ पैदा हुआ था उसी वर्ग में खेल सकता है।

इस नियम पर हमें तो बहुत आपत्ति है। ऐसे नियम बेतुके हैं जिनका कोई मतलब नहीं। कोई अगर खेल में अच्छा है, कुश्ती में अच्छा है तो उसे उसके परफॉर्मेस के आधार पर रखना चाहिए। न कि जेंडर के आधार पर। ख़ैर..कुश्ती लड़ने के बाद जब मैक ने जीत हासिल की उसके बाद उन पर कई आरोप लगने शुरू हो गए। कुछ विपक्षी पहलवानो ने मैक को लेकर सवाल उठाए और कहा कि लड़कियों में उन्हें अधिक ताकतवर होने का फायदा मिला है। क्योंकि मैक लड़का बनने के लिए काफी समय से टेस्टोस्टीरॉन ले रही थीं।

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