राख खाने के पीछे इन लोगों का मानना है कि मृत व्यक्ति की राख खाने से उनकी जाति के प्रिय सदस्य की आत्मा जीवित रहती है तथा इससे आने वाली पीढिय़ों का भाग्य अच्छा होता है! राख का सूप बनाने के लिए मृत व्यक्ति के शरीर को पास के जंगल में पत्तों से ढककर रख दिया जाता है। 30 से 45 दिनों के बाद वे विघटित शरीर से हड्डियां एकत्रित करते हैं और उन्हें जलाते हैं। हड्डियों के जलने से जो राख मिलती है उसे केले के साथ मिलाकर सूप बनाया जाता है। पूरी जनजाति यह सूप पीती है! पूरी जनजाति को यह मिश्रण पीना जरूरी होता है। इसके लिए जनजाति के सदस्यों के बीच सूप पास किया जाता है। इसे एक बार में ही पीना जरूरी होता है।