क्या आप ने कभी सुना ऐसा है कि मानव लिंग कि पूजा कि जाती हो, नही ना लेकिन एक ऐसा देश है जहां पर मानव लिंग कि पुजा की जाती है यह सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा है लेकिन बिल्कुल सही सुना है। हमने कई तरह की पूजाओ के बारे में सुना है लेकिन हर जगह भगवान की ही पूजा की जाती हैं।

भूटान के निवासी मानव लिंग की पूजा करते आ रहे हैं। लेकिन अगर आप वहां गए हैं तो दीवारों पर मानव लिंग की पेंटिंग दिखना आम बात है। ये पेंटिंग्स प्राचीन बौद्ध परंपरा की साक्षी हैं। इन लिंगों को अलग-अलग चटकदार रंगों में भी पेंट किया जाता है। कहा जाता है कि लिंग की प्रतिमा बुरी आत्माओं को दूर रखती है और द्वेष भावना से बचाती है। धारणा ये भी है कि ऐसी पेंटिंग्स उर्वरता को बढ़ाती हैं।

एक विचित्र बौद्ध भिक्षु भूटान आया था जो कि मदिरापान, महिलाओं के साथ यौन संबंध और कामुकता में लिप्त था। इन तिरस्कारी तरीकों से वो गैर मठ-संबंधी बौद्ध धर्म का तात्पर्य समझाता था। उसके इन कारनामों की वजह से कई पौराणिक कथाएं भी बन चुकी हैं। दृक्पा कुंले के किस्से और भी विवादस्पद हुआ करते थे। वो कहता था कि ‘घड़े की तली में सबसे अच्छी मदिरा होती है और जीवन का असली आनंद नाभि के नीचे ही मिलता है’। सामाजिक रीतियों को न मानने वाला दृक्पा खुद को ‘क्यिशोदृक का पागल’ कहता था। ‘उर्वरता का संत’ कहलाने वाला ये भिक्षु कई दिनों तक मदिरा के नशे में कुंवारी कन्याओं के साथ यौन संबंध बनाने में बिता देता था। दृक्पा अपरंपरागत बौद्ध धर्म का प्रचार करता था जिसमें वो सामान्य जन का ज्ञानोदय करता था, खासकर महिलाओं का। उसने अपने अनुचरों को शिक्षा दी थी कि मनुष्य को सांसारिक तृष्णा से दूर रहना चाहिए और सादा जीवन व्यतीत करने का अनुसरण करना चाहिए।

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