आज कल के समय में सिर्फ साधुओ का नाम ही रह गया है। जो की सिर्फ बाबा जी वाले कपडे और एक झोला लटका लेते है। अधिकांश साधु योगी होते हैं। साधु मोक्ष की साधना करते हैं। अक्सर देखा गया है आबादी भीड़ भाड़ से दूर रहते हैं। साधु खुद को काफी दूर रखते है।

और कुछ विशेष लोकप्रिय तीर्थ स्थानों पर जो साधु होते हैं उनका मतलब होता है प्राप्त कमाना मतलब की खुद भी भिखारी बन जाते है। साधुओं का एक रूप और होता है अधोरी लेकिन इनका ताल्लुक भूत और कब्रिस्तान से होता है। साधुओं के तपस्या के संकल्प का उद्देश्य अग्नि और सूर्य के तेज को आत्मसात करना होता है।

माना जाता है कि अठारह वर्षों की अखंड तप की साधना के बाद ऐसे साधू उत्‍पन्‍न बन पाते हैं। ये अठाहरह वर्ष की क्रिया तीन-तीन वर्षों की साधना अलग-अलग चरणों के नाम होगी। 84 बार अग्नि स्‍नान कर चुके हैं। ये साधु अग्नि स्‍नान करते है। आपको बता दें कि इस अग्नि स्‍नान के बाद भी इस साधु को कुछ नहीं हो रहा है। वैज्ञानिक भी हैरान हो रहे है इनके इस तरीके को देखकर।

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