हमारे देश में मरने के बाद पार्थिव शरीर को पूरे सम्मान के साथ नहला कर और अच्छे कपड़े पहनाकर घर से विदा करने की परम्परा है जो कि सदियों से चली आ रही है। लेकिन देश के एक गाँव में इस परंपरा का कोई महत्व नहीं है बल्कि इसके विपरीत अगर किसी की मौत घर के बाहर हो जाए तो उस के शरीर को घर में लाना अपशगुन माना जाता है। ऐसे शख्स के पार्थिव शरीर का दाह संस्कार गांव के बाहर ही किया जाता है। खरगोन जिले के सेमरला गांव में 100 साल से इस नियम का सख्ती से पालन किया जा रहा है।

गांव के लोगों का इस अनोखी परंपरा के बारे में कहना है कि सौ साल पहले गांव में काफी अपशगुन हो रहा था। एक आदमी का अंतिम संस्कार करके आते, तब तक दूसरे का निधन हो जाता। एक घर में अगर आग लग गई तो उसे जब तक बुझाते, दूसरी जगह आग की सूचना आ जाती। ऐसे में पूरा गांव दहशत में आ गया। फिर नदी पार कर राटकोट गांव से एक जानकार को बुलाया गया। उसने हफ्तेभर पूजापाठ की। गांव की चारों तरफ की सीमा को शराब से बांधी और फिर गांव के बाहर मौत होने पर शव को घर नहीं लाने का सख्त नियम बना दिया। तभी से ये परंपरा चली आ रही है।

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