वैसे तो हिन्दू धर्म में मरने के बाद इंसान को जलाया जाता है। जलाने के लिए उसकी चीता शशान में बनाई जाती है। लेकिन देश का एक इलाका ऐसा भी है जहां कई सालों से एक ऐसी परंपरा चली आ रही है जिसके चलते अपने सगे संबंधियों के मरने के बाद उन्हें घर में ही दफना दिया जाता है। दरअसल मध्य प्रदेश का एक शहर ऐसा है जहां लोगों के घरों में आंगन में और चौबारों में उनके अपनों की लाशें दफन हैं।

बड़ौदा और इंद्रपुरा में नाथ संप्रदाय के लोगों के अंतिम संस्कार के लिए कोई जगह नहीं है। इस वजह से ये अपनी 900 साल पुरानी परंपरा को बनाए रखने के लिए घरों में ही शवों को दफना रहे हैं। मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के बड़ौदा कस्बे और 2 किमी दूर स्थित गांव इंद्रपुरा के कई घरों में परिवार के मृत सदस्यों की समाधियां मौजूद हैं। बड़ौदा में नाथ योगी समाज के लोगों की आबादी लगभग 400 है। इस समाज के लगभग 25 से अधिक परिवारों के किसी न किसी सदस्य की मौत के बाद उसके शव को घर में ही दफनाया गया है। खास बात यह है कि कुछ परिवार इन समाधियों की पूजा कर रहे हैं तो कुछ ऐसे हैं, जो जमीन के अंदर शवों को दफना तो दिया, लेकिन वहां पूजा करने की बजाए उस जमीन को दूसरे उपयोग में भी ला रहे हैं।

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