नाथ योगी संप्रदाय के आराध्य देव भगवान शिव हैं। नाथ संप्रदाय के गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ ने पहली बार 11वीं सदी से शवों की समाधि की परंपरा की शुरुआत की थी। नाथ समाज में तभी से शव को दफनाने (समाधि) की परंपरा चली आ रही है। नाथ साधु-संत दुनिया भर में भ्रमण करने के बाद उम्र के अंतिम चरण में किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं।
नाथ संप्रदाय के लोग के पास बड़ौदा कस्बे और इंद्रपुरा में शवों को दफनाने के लिए आज अलग से कोई जमीन नहीं है। अपनी 900 साल पुरानी परंपरा को बनाए रखने के लिए मजबूरी में इस समाज के लोग शवों को अपने घरों में ही दफनाने लगे हैं। यह समाज पिछले 20 साल से शवों के अंतिम संस्कार करने के लिए शासन और सरकार से मांग कर रहा है, लेकिन इस पर अभी तक कुछ भी नहीं हो सका।

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