मध्य प्रदेश में आदिवासी समुदाय के एक शख्स को पत्नी की चिता टायर, कागज, प्लास्टिक और झाड़ियों से जलाना पड़ा उस ने ऐसा इसलिए करा क्योंकि उस के पास लकड़ी के लिए पैसे नही थे। यह घटना रतनगढ़ गांव में रहने वाले जगदीश भील के पास की है जहां पर एक शख्स के पास पत्नी का अंतिम संस्कार करने के लिए भी पैसे नहीं थे। अंग्रेजी अखबार ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के मुताबिक, पत्नी की मौत के बाद वह कई घंटों तक उसके अंतिम संस्कार के लिए कचरा जमा करता रहा।

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‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के मुताबिक, जगदीश ने बताया, ‘मेरी पत्नी नोजीबाई का शुक्रवार सुबह निधन हुआ। हम अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां रतनगढ़ गए। लेकिन, ग्राम प्रधान ने कहा कि वह कुछ नहीं कर सकते क्योंकि उनके पास ‘पारची’ के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं जिसमें 2,500 रुपए लगते हैं।

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जगदीश के दुखी और असहाय परिवार ने भागदौड़ कर कई लोगों से मदद मांगी। जगदीश के भाई ने बताया कि कई लोगों ने शव को निपटाने के तरीके सुझाए। उसने बताया, एक आदमी ने तो यहां तक कह दिया कि अगर पैसे नहीं हैं तो शव को नदी में फेंक दो। लेकिन उनकी मदद के लिए एक भी आदमी वहां नहीं आया। जगदीश को इस बात की पीड़ा है कि उसकी पत्नी घर चलाने के लिए जंगल से लकड़ी चुना करती थी, लेकिन मरी तो उसकी चिता जलाने के लिए ही लकड़ी का इंतजाम नहीं हो सका।

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