याचिकाकर्ता मौसमी के पति देबाशीष ने बैंक ऑफ बड़ौदा से आवास ऋण लिया था। उन्होंने इसका बीमा नेशनल इंश्योरेंस कंपनी से कराया था। मौत होने की स्थिति में बीमा राशि प्रदान किए जाने की बात थी। जनवरी 2012 में देबाशीष की मौत हो जाने पर जब मौसमी ने बीमा कंपनी का दरवाजा खटखटा कर आवास ऋण की राशि खत्म कराने की गुजारिश की तो उसकी अर्जी ठुकरा दी गई। इसके खिलाफ 2014 में वह जिला उपभोक्ता अदालत गई।

1 2 3 4 5
No more articles