भांग और काली मिर्च खाइये, अस्थमा और एनीमिया को दूर भगाइये , देश के दो करोड़ लोगों पर मार कर रही रक्त और फेफड़े से संबंधित बीमारी सिक्कल सेल एनीमिया पर भांग और काली मिर्च के जरिए काबू पाया जाएगा। इसके साथ दो अन्य पौधों के मिश्रण से टेबलेट तैयार की गई है, जिसे क्लीनिकल ट्रायल के बाद इस बीमार से प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को बांटा जाएगा। जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश, गुजरात (दो-तीन जिले), छत्तीसगढ़ और झारखंड की आदिवासी लोग इस बीमारी सबसे ज्यादा चपेट में हैं। पीएमओ ने इस बीमारी पर अंकुश लगाने के आदेश जारी किए हैं। यह बीमारी इतनी खतरनाक है कि इससे पीडि़त व्यक्ति महज 20 से 30 साल की जिंदगी जी पाता है।
जेनेटिक म्यूटेशन की वजह से सिक्कल सेल एनीमिया बीमारी फैल रही है। पुश्त दर पुश्त बीमारी परिवारों में बढ़ रही है। इन्हीं परिवारों के दरम्यान शादियां हो जाती हैं, जिससे बीमारी अगली पुश्त तक पहुंच जाती है। इस बीमारी के आकर लाल रक्त कण (रेड ब्लड सेल) में विरूपण यानि विकृति आ जाती है। व्यक्ति में रेड ब्लड सेल (आरबीसी) गोलाकार होते हैं। इनके गोलाकार होने से ही शरीर को ऑक्सीजन सप्लाई होती है। बीमारी से पीडि़त लोगों में ये आरबीसी सेल द्राती की शक्ल ले लेते हैं, जिससे इनके ऑक्सीजन लेने की क्षमता घट जाती है। इससे फेफड़ों की शक्ति पर असर पड़ता है। सांस लेने में घुटन के साथ ही जबरदस्त दर्द महसूस होता है।
इंडियन फार्मास्यूटिकल कांग्र्रेस में शिरकत करने पहुंचे डॉ. राम विश्वकर्मा ने बताया कि इससे पीडि़त व्यक्ति की जिंदगी महज 20 से 30 साल है। फेफड़ों में पूरी ऑक्सीजन न पहुंचने से जबरदस्त दर्द होता है। पीएमओ के कहने पर हमने निदान ढूंढा है। सिक्कल प्रोसेस रिवर्स कर ऐसे लोगों की उम्र 50 साल तक बढ़ाने की कोशिश है।काली मिर्च और भांग के साथ दो अन्य पौधे हैं, जिनके मिश्रण से टेबलेट तैयार की गई है। एनिमल मॉडल पर ये बिलकुल सुरक्षित है। छह महीने इस फायटो मेडिसन का छत्तीसगढ़ के अस्पताल में क्लीनिकल ट्रायल होगा। इसके बाद इसे बीमारी से पीडि़त लोगों को दिया जा सकेगा। जिन इलाकों में बीमारी है, वहां लोगों को जागरूक किया जाएगा।
डॉ. राम विश्वकर्मा ने बताया कि इस टेबलेट में भांग का सीबीडी (केनिबी डियोल) कंपाउंड और काली मिर्च का मिश्रण प्रयोग किया गया है। भांग में सीबीडी और टीएचसी (टेट्रा हाइड्रो केनिबीनोल) होते हैं। टीएचसी से नशा होता है। केवल सीबीडी तत्व को इस दवा में प्रयोग किया गया है। ये दर्द में राहत देगा।जम्मू स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटेग्र्रेटिव मेडिसन के निदेशक डॉ. राम विश्वकर्मा ने बताया कि सीएसआइआर (जम्मू), सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी हैदराबाद, इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटेग्र्रेटिव बायोलॉजी नई दिल्ली, इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी कोलकाता और इमटेक चंडीगढ़ इस प्रोजेक्ट पर संयुक्त तौर पर काम कर रहे हैं।