इस देश की परंपरा के अनुसार आप बदल सकते है यहां पर अपने पार्टनर, आपने देश में बहुत से परंपरा देखे होगें जो कुछ अलग ही रहते है। लेकिन आज हम आपको बालाघाट की एक ऐसी परंपरा के बारे में बताने जा रहे है जो पूरी दुनिया से अलग है ये परंपराएं आपको चौंका देगी। यहां के सभी लोग लिव-इन में रहते हैं। जब तक चाहा जिसके साथ रहना चाहा, रहा, फिर किसी दूसरे के साथ रहना शुरू कर दिया। बच्चे भी होते हैं और उनका नाम पिता के नाम से चलता है, न तलाक का कोई झंझट ना ही दहेज का खौफ।

जिला मुख्यालय से लगभग 60 किमी दूर पहाड़ी व जंगलों से घिरे इस दुगलई आदिवासी गांव में शादी-ब्याह को लेकर कोई परम्परा नहीं है। रीति-रिवाज के नाम पर कोई रस्म अदायगी भी नहीं की जाती है। यहां एक पुरुष और महिला अपनी जीवनकाल में औसतन दो-तीन साथी जरूर रख लेती हैं। एक ही गांव में जिंदगी, शादी और मौत का रिश्ता आपको हैरान कर सकता है।

13-14 साल की उम्र होने के साथ ही लड़कियां आपना साथी चुन लेती हैं। इसके लिए परिवार के मुखिया या गांव के मुखिया-सरपंच की अनुमति की जरुरत नहीं होती है। बिन फेरे लिए ही शादी हो जाती है। उनके बच्चे पैदा होते हैं और वे भी इसी तरह रहने लगते हैं। संबंधों के बनाने में बस अपने भाई-बहन को छोड़ दिया जाता है।

इस परंपरा के पीछे भी अजीब-सा कारण है। लोगों के मुताबिक वे इतने गरीब हैं कि शादी-ब्याह के जश्न पर खर्च नहीं कर सकते हैं। गरीबी के कारण ही यहां दूसरे गांवों के लोग संबंध के लिए नहीं आते हैं। थोड़ी-बहुत खेती करते हैं और जिंदगी जीते हैं, न तो स्कूल जाने का झंझट और न किसी अधिकारी का डर।

कहने के लिए गांव की एक पंच हैं, जिनका नाम कमली बाई है। उनका कहना है कि गरीबी के चलते हम खाने-जीने के अलावा और कुछ सोच ही नहीं पाते हैं। बाल-विवाह के प्रति जागरुकता का भी यहां कोई मतलब नहीं है। 20 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते महिलाएं दो-तीन बच्चों की मां बन जाती हैं। यहां सरकारी योजनाओं की पोल खुल जाती है, दुगलई में कोई सरकार नहीं है।

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