दोनों शेरों को देखते ही लंगूर उनसे मज़े लेने लगा। जैसे ही लंगूर नीचे आता, दोनों शेर उसकी तरफ लपक पड़ते, लेकिन होशियारी के साथ एक दम फुर्ती से तुरंत पर चढ़ जाता। लंगूर ने दोनों शेरों को इस कदर किलसा दिया कि दोनों की ग़ुस्से की सीमा पार हो गयी। कभी वो उनके कान खींचता तो कभी पुंछ और बेचारे शेर जैसे ही उसे पकड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करते वैसे ही वो एक डाली से दूसरी डाली पे भाग जाता। अंत में थक कर दोनों शेर अपने अपने रास्ते चलने लगे। उनकी शक्ल को देख लकार ऐसा ही लग रहा है मानों कह रहे हों अंगूर खट्टे हैं।
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