उनकी अंतिम इच्छा थी कि जब उनका निधन हो तो उन्हें कमल की स्थिति में दफनाया जाए। वर्ष 1955 और पुन: 1973 में उनके पार्थिव शरीर अवशेष की जांच के लिए निकाला गया। इसकी जानकारी को सोवियत अधिकारियों से गुप्त रखा गया। इस पर बौद्ध पारंपरिक संघ के वर्तमान प्रमुख लामा दम्बा अयुशीव का कहना है कि पहली बार उन्हें शाम आठ बजकर पांच मिनट पर देखा गया, जबकि उस समय लामा के कक्ष में कोई नहीं जा सकता है।
उन्होंने कहा कि लामा हॉल में अपने सिंहासन से पांच और छह मीटर नीचे हैं और जहां व्यक्ति खड़ा है वह जगह मुख्य दरवाजे की है। वहीं रूस की बौद्ध पारंपरिक संघ के प्रवक्ता तुब्देन बल्दानोव ने कहा कि शायद यह किसी तरह का संकेत है। शायद वह कुछ कहना चाहते हैं।
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