सदियों से देश में कन्यादान की प्रथा का चलन है। कन्यादान की रस्म हमेशा एक बाप के द्वारा पूरी की जाती है। इस प्रथा को तोड़ते हुए पहली बार एक महिला ने अपनी बेटी का कन्यादान किया है। जहां एक तरफ हमारे देश में विधवा महिलाओं को किसी भी खुशी के मौके पर उपस्थित रहने की भी अनुमति नहीं रहती वहीं इस विधवा महिला ने अपनी बेटी की शादी में सारे रीति-रिवाज़ खुद पूरे किये।

अनेकता में में एकता जैसी नारे लगाने वाले हमारे देश में ऐसी कई विशेषताएं हैं, जो इसे बाकी देशों से अलग और बेहतर राष्ट्र बनाती हैं, लेकिन सालों से चली आ रही कुछ सामाजिक कुरीतियों की वजह से हम हमेशा शर्मिंदा महसूस करते हैं। विधवा अशुभ है’, ये सोच इस हद तक दिमाग में बैठ गयी है कि विधवाएं भी शुभ कार्यों में जाना पसंद नहीं करतीं।

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