समाज में हमेशा से ही ट्रांसजेंडर लोगों को बड़ी ही नीचता की नज़रों से देखा जाता रहा है। हर मोड़ पर लोगों के ताने सुनने को मिलते हैं। लेकिन कहते हैं ना मंज़िल उनही को मिलती है जिनके सपनों में जान होती पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है। यह लाइन जोइता नाम की इस ट्रांसजेंडर महिला की जिंदगी पर एक दम सटीक बैठती है। जिसने भीख मांगने से लेकर जज बनने तक सफर बड़ी ही कठिनाइयों के साथ तय किया।

एक ट्रांसजेन्डर के रूप में जोइता का राष्ट्रीय लोक अदालत तक का सफर इतना आसान नहीं था। 8 जुलाई को लोक अदालत के लिए इस्लामपुर के सब-डिविजनल लीगल सर्विस कमिटी की तरफ से जोइता को बेंच के लिए नियुक्त किया गया। शनिवार को जोइता सफेद कार में “न्यायाधीश का पद” संभालने के लिए पहुंची तो सिर्फ ट्रांसजेंडर्स समुदाय के लिए नहीं बल्कि पूरे देश के लिए गौरव की बात थी।

जोइता ने अपनी जिंदगी के पलों को सांझा करते हुए बताया कि आज जिस जगह पर मेरा दफ्तर हैं मैं यहां जिंदगी का गुजारा करने के लिए भीख तक मांग चुकी हूं। साल 2010 मे अदालत की कुछ ही दूरी पर एक होटल है, जहां मेरे लिंग के कारण बाहर निकाल दिया गया और पूरी रात मुझे सड़क पर गुजारनी पड़ी थी। इस घटना के बाद ही उसने अपने जैसे और भी दूसरे लोगों के लिए लड़ने की ठान ली थी। भीख मांगने से लेकर सोशल वर्कर का काम और फिर राष्ट्रीय लोक अदलात के बेंच के लिए चयनित होना ये सब जोइता ने इसी जिंदगी में देखा। जोइता ने एक निजी समाचार पत्र से बातचीत में कहा कि मुझे इस बात का गर्व है और मेरा चयन लिंग भेद के खिलाफ समाज को एक सख्त संदेश देगा। जोइता के लिए जो नियुक्ति पत्र आया था उसमें उन्हें सोशल वर्कर बताया गया है तथा उन्हें “लर्न्ड जज” की केटेगरी में रखा गया है।

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