शवयात्रा के लिए सेना के ट्रक और अंतिम संस्कार स्थल को सजाने में दो टन फूलों का इस्तेमाल किया गया। इसे राज्य के विभिन्न हिस्सों के अलावा बेंगलुरु से मंगाया गया। सजावटी फूलों के अलावा गुलाब और सफेद गेंदा का प्रयोग हुआ। जयललिता के अंतिम क्षणों में भी परिजन दूर ही रहे। अस्पताल से लेकर जया की अंतिम यात्रा भी शशिकला नटराजन की देखरेख में हुई और राजाजी हॉल में शशिकला के ही अधिकतर रिश्तेदार मौजूद रहे।
आयंगर ब्राह्मणों में दाह संस्कार की प्रथा के बावजूद तमिलनाडु सरकार और अंत तक जयललिता की सहयोगी रहीं शशिकला नटराजन ने उन्हें दफनाने का फैसला लिया। लोग इसे द्रविड़ आंदोलन से जोड़ रहे हैं। पेरियार, अन्नादुरई और एमजी रामचंद्रन जैसे द्रविड़ आंदोलन के बड़े नेताओं को भी दफनाया गया था। हालांकि जयललिता इन बड़े नेताओं के विपरीत आस्तिक थीं। दफनाने की एक बड़ी वजह यह भी बताई जा रही है कि बड़े नेताओं को दफनाए जाने के बाद समाधि बनाने का चलन है।