इन्सानों के लिए सबसे ज्यादा दिलचस्प अनुभव है सेक्स। सेक्स के बिना इंसान का जीवन अधूरा सा रहता है लेकिन इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें सेक्स करना बिल्कुल भी नहीं पसंद।
जी हां, दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्हें कामेच्छा या यौनेच्छा महसूस नहीं होती. वो विपरीत लिंग के प्रति कोई खिंचाव महसूस नहीं करते। सेक्स के बग़ैर भी उन्हें अपनी ज़िंदगी में कोई कमी नहीं महसूस होती, जबकि सदियों से समाज में, लोगों के बीच यही मान्यता रही है कि सेक्स के बग़ैर ज़िंदगी अधूरी है।
ऐतिहासिक ग्रंथों में सेक्स को बहुत अहम बताया गया है। ग्रीक पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि अगर आपकी सेक्स लाइफ़ सही है तो ही आपकी ज़िंदगी सही चल रही है।अगर ऐसा नहीं है तो आपको इंसान नहीं माना जा सकता। मगर हाल के दिनों में ऐसे लोग खुलकर सामने आ रहे हैं, जो ये कहते हैं कि उन्हें यौनेच्छा महसूस नहीं होती, उन्हें सेक्स की ज़रूरत नहीं लगती। ऐसे लोगों को अब भी समाज में स्वीकार करने में हिचक है, लेकिन बहुत से वैज्ञानिक हैं जो ऐसे लोगों के बारे में जानने में दिलचस्पी ले रहे हैं।
जिन्हें सेक्स की ज़रूरत महसूस नहीं होती, उसमें दिलचस्पी नहीं है, वो ख़ुद को ‘एसेक्सुअल’ कहते हैं। एक मोटे अंदाज़े के मुताबिक़ दुनिया में कम से कम एक फ़ीसद लोग ऐसे हैं जिन्हें कामेच्छा महसूस नहीं होती, जिन्हें सेक्स में दिलचस्पी नहीं है। ये भी कहा जाता है कि ऐसे लोगों में 70% महिलाएं हैं।
90 के दशक तक ‘एसेक्सुअलिटी’ के बारे में चर्चा न के बराबर होती थी। कुछ लोगों ने इस बारे में क़िताबें लिखी थीं, लेकिन इन क़िताबों में कीड़े-मकोड़ों और दूसरे जानवरों के बीच ‘एसेक्सुअलिटी’ की पड़ताल की गई थी। इंसानों की ‘एसेक्सुअलिटी’ गंभीरता से पड़ताल नहीं हुई थी। इस बारे में पहला गंभीर रिसर्च, कनाडा के एंथनी बोगार्ट ने किया, जिन्होंने इस बारे में अपने तजुर्बों पर एक पर्चा छपवाया था।
बोगार्ट ने अपना तजुर्बा क़रीब 18 हज़ार ब्रिटिश नागरिकों पर किया था। तभी पता चला कि बहुत से ऐसे लोग हैं जिनकी सेक्स में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं। वो समलैंगिक भी नहीं थे, बस उनमें कामेच्छा नहीं थी। ऐसे लोगों को इंसान तक मानने से इनकार कर दिया गया था।