अगर आपका बच्चा देर तक सोता रहता है तो उसका स्कूल बदल दीजिए, रिसर्च , किशोरों के लिए नींद और उनके देर से सोकर जगने के बारे में कई शोध किए जा चुके हैं। अब हार्वर्ड के वैज्ञानिकों का एक नया अध्ययन किया है, जिसमें कहा गया है कि किशोरों के ‘नेचुरली डिले स्लीप रिदम्स’ (प्राकृतिक तौर से देर से सोकर उठने की रिदम्स) के कारण वे देर से सोकर जागते हैं। ऐसे में उनका दाखिला उन स्कूलों में करना चाहिए, जो देर से शुरू होते हैं। इससे छात्रों के स्वास्थ्य जोखिम को कम किया जा सकता है।

यूएस में हार्वर्ड डीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने साल 2003 से 2014 तक अमेरिकन टाइम यूज सर्वे के 53,689 प्रतिभागियों के सेल्फ-रिपोर्ट डाटा का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि क्रोनोटाइप में सबसे बड़ा अंतर किशोरावस्था और शुरुआती वयस्कता के दौरान होता है। यह भी पाया गया कि दो लोगों के क्रोनोटाइप्स में 10 घंटे तक का अंतर हो सकता है और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उनकी उम्र क्या है।

अतीत में किए गए अध्ययनों से पता चला था कि जो बच्चे सोशल मीडिया पर मैसेज पढ़ने और भेजने की वजह से देर रात तक जागते हैं, वे दूसरे बच्चों की तुलना में स्कूल में लगातार थकान महसूस करते थे। बाद के अध्ययन से पता चला कि नींद की कमी या देर से सोने के कारण किशोरों का दिमाग प्रभावित हो सकता है। एक अन्य अध्ययन में सुझाव दिया गया कि किशोरों में सोने को लेकर हो रही परेशानियों से उन्हें अकेलेपन की समस्या हो सकती है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि लोगों का सर्कैडियन सिस्टम वातावरण में प्रकाश और अंधेरे के साथ सिंक्रनाइज करता है। इसकी वजह से क्रोनोटाइप बढ़ता है। उदाहरण के लिए अर्ली क्रोनोटाइप वाले लोग जल्दी सो जाते हैं, वहीं जिन लोगों में लेट क्रोनोटाइप होता है, वे रात में देर से सोते हैं और दिन में भी सो सकते हैं।

No more articles