कहानियों की माने तो औरंगजेब जब चित्रकूट आया तो उसने अपनी सेना से भगवान शिव के भगवान शिव के मत्यगयेंद्र मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया। जब अगली सुबह सिपाही मंदिर तोड़ने के लिए गए तो अचानक से उनके पेट में दर्द होने लगा और फिर वो बेहोश हो गए। अपने सिपाहियों की ऐसी हालत देख कर औरंगजेब घबरा गया। बहुत प्रयास करने के बाद भी जब उसके सिपाही ठीक न हूए तब वहां उपस्थित एक सदस्य ने उन्हें बाबा बालक दास के पास जाने की सलाह दी और कहा कि इनका ईलाज सिर्फ वो ही कर सकते हैं।
बाबा के पास जाकर जब बादशाह ने अपने सिपाहियों के जीवन की भीख मांगी तब बाबा ने तत्काल शिव मंदिर को तोड़ने से रोकने की सलाह दी। बादशाह के ऐसा करने से उसके सिपाही ठीक होने लगे। बाबा के इस चमत्कार को देखकर बादशाह ने अपने विश्वसनिय सिपहसलाहकार गैरत खां को चित्रकूट में रहकर भव्य मंदिर बनवाने का आदेश दिया, बाद में ये मंदिर बालाजी मंदिर के नाम से विख्यात हुआ।
बादशाह औरंगजेब ने 8 गांवो की 330 बीघा जमीन और राजकोष से 1 चांदी का सिक्का देने का फरमान जारी किया, उस फरमान की छायाप्रति आज भी मंदिर में मौजूद है।