गरीबी से जूझती उस 17 साल की लड़की के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह अपनी उच्च शिक्षा पूरी कर सके। लेकिन वर्षो पहले पिता के परिवार से अलग हो जाने के बाद उसकी मां ने उसकी ज़िंदगी और अरमानों को मरने नहीं दिया। वह कूड़े के पुर्नचक्रण से मिले पैसों से उसकी ज़िंदगी सँवारती रही। इस मेहनत ने रंग दिखाया और देखते ही देखते पासायेंग शोहरत की पहली सीढ़ी पार कर गई। पर उन सीढ़ियों पर चढ़कर भी उसकी ज़िंदगी मां के कदमों में झुकी रही।

 

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