आज जहां दुनिया जहां में चारों और बुराईयां ही बुराईयां फैली हुई हैं, हर कोई एक दूसरे को लूटने पट तुला हुआ है। ऐसे कल युग में आज भी अच्छाई मौजूद है। कुछ ऐसे लोग आज भी मौजूद हैं जो इंसानियत को ही सबसे बड़ा धर्म समझते हैं। ऐसा ही एक नाम है ‘अब्दुल सत्तर ईदी’। यह नाम पाकिस्तान में पूरे अदब के साथ लिया जाता है। अब्दुल सत्तार पाक आवाम के दिलों पर इस तरह राज करते हैं कि उनके अनेकों नाम हैं… ‘फरिश्ता’, ‘फादर टेरेसा’ तो ‘दूसरे गांधी’। पाकिस्तान में इनकी समाजसेवी संस्था की प्रतिष्ठा इतनी ऊंची है कि अगर संस्था का वाहन किसी फायरिंग क्षेत्र में भी पहुंच जाए तो वहां गोलीबारी रुक जाती है। दंगे-फसाद थम जाते हैं। कुछ ऐसी ही खास शख्सियत हैं जनाब अब्दुल सत्तर ईदी। आइये जानते हैं कौन हैं ये जनाब और किस तरह से इंसानियत के काम कर रहे हैं ईदी साहब।

मूल रूप से भारतीय अब्दुल सत्तार का जन्म 28 फरवरी, 1928 को गुजरात के जूनागढ़ जिले के बांटवा गांव में और निधन 8 जुलाई, 2016 को कराची में हुआ। अब्दुल सत्तार सन् 1947 में आजादी के बाद हुए भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद वे सपरिवार पाकिस्तान पहुंच गए थे। वर्ष 1951 में उन्होंने एक छोटी सी डिस्पेंसरी खोली। इस समय भी जब उनकी कमाई लगभग न के बराबर थी, तब भी वे गरीब लोगों की मदद करते थे। अब्दुल सत्तार ईदी की समाज सेवा के लिए पाकिस्तान सरकार द्वारा उन्हें 16 बार नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। उन्हें वर्ष 1996 में भारत की ओर से गांधी शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

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