इन सब चीजों को खाना रीता का शौक नही बल्कि यह उसकी मजबूरी थी जो आदत मे बदल गई है। रीता जब 4 साल की थी तो उसकी माँ के देहान्त के बाद गरीब पिता रोटी के जुगाड़ मे जुट गया और भूख से बिलबिलाई रीता ने प्लास्टिक,लोहा और कांच खाना शुरू कर दिया फिर क्या था जब भी रीता को भूख का एहसास होता तो वह कूड़े के ढेर की तरफ बढ़ जाती और लोहा, कांच और प्लास्टिक खाकर अपनी भूख मिटाती रही।
रीता के पड़ोसी सुरेन्द्र ने बताया कि, जहां पिता रोजी रोटी की आस में घर से बाहर घूमता रहता था, तो वही रीता भूख मिटाने के लिए लोहा, ब्लेड और प्लास्टिक के कैसेट खाकर अपना गुजारा करती थी।
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