यह है भारत का पहला डिसेबल्ड ड्राइविंग लाइसेंस पाने वाला शख्स

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लेकिन कानून के चलते, विक्रम ने अपनी कार को अपने अपनी शारीरिक आवश्यकताओं के अनुरूप संशोधित किया। अब वो ऑटोमैटिक कार चलाते हैं जिसमें क्लच पैडल नहीं है। चूंकि, विक्रम अपने बाएं पैर का उपयोग करके ब्रेक और एक्सीलेटर पैडल को संचालित करते थे, उन दोनों के बीच दूरी उनके लिए थोड़ा असुविधाजनक था। एक्सलरेटर तक पहुंचने के लिए उन्हे अपना बायां पैर को खींचना पड़ता था। लेकिन उन्होने इस मुश्किल को हल कर दिया, क्योंकि उन्होने एक क्लच की जगह पर ही समानांतर एक्सलरेटर को बनवा दिया था।

ऐसा करने से विक्रम के लिए पेडल आपरेशन करना आसान हो गया है और कार की तकनीकी पहलू का भी ख्याल रखना आसान हो गया।

विक्रम अब एक पेशेवर की तरह अपने पैरों से कार चलाने लगे थे और एक साल के प्रयास के बाद क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय ने उन्हे लाइसेंस दे दिया। वैसे आपको बता दें कि दोनों हाथ न होने के बावजूद भी विक्रम स्विमिंग, फुटबॉल, कंधों के सहारे शेविंग, पैरों से टाइपिंग और नाक से स्मार्ट फोन ऑपरेट करते हैं।

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