एक ताज़ा शौध की रिपोर्ट के अनुसार एम्स में हर साल 4 से 5 हजार ऐसे बर्थ डिफेक्ट वाले बच्चों को रेफर किया जाता है। एम्स के पीडिएट्रिक्स डिपार्टमेंट के जनेटिक डिविजन की डॉक्टर मधुलिका काबरा का कहना है कि बच्चे में जन्म से दो तरह की दिक्कतें, स्ट्रक्चरल और फंक्शनल डिफॉर्मिटी हो सकती है। स्ट्रक्चरल में किसी का तालु कटा होता है, दिल में छेद हो सकता है, पीठ में फोड़ा हो सकता है। दूसरी ओर फंक्शनल डिफॉर्मिटी में मेटाबॉलिक फंक्शन पर असर होता है। इसमें थैलीसीमिया, मानसिक विकार, मंद बुद्धि जैसी बीमारी हो सकती है।

डॉक्टरों का कहना है कि इसमें कोई दो राय नहीं कि छोटे शहरों में काम करने वाले डॉक्टर भी इस बात से अनजान होते हैं। 12 हफ्ते में डबल मार्कर टेस्ट होता है। इसके बाद 16 से 18 हफ्ते के बीच ट्रिपल मार्कर टेस्ट होता है। इसमें ऐसे जनेटिक कारण का अंदेशा रहता है। इससे आगे की जांच 20 हफ्ते से पहले जरूरी होता है, जिसमें प्रेग्नेंट महिला के पेट के अंदर से पानी निकालकर जांच की जाती है। अगर सही से पानी नहीं निकाला जाए तो प्रेग्नेंसी टर्मिनेट भी हो सकता है। इस टेस्ट के बाद यह साफ हो जाता है कि बच्चे को बीमारी है या नहीं। लेकिन, ग्रामीण इलाकों में ज्यादातर मामले में यह जांच समय पर नहीं हो पाती हैं और 20 हफ्ते के बाद अबॉर्शन भी नहीं। इससे बेबी डिफेक्ट के साथ पैदा होता है, जो बाद में न केवल मां के लिए परेशानी का कारण बनता है, बल्कि आर्थिक बोझ भी बढ़ जाता है।

 

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