अक्सर जीवन की असफलताओं को देख कर हमें लगता है कि उम्र निकलती जा रही है और हम कुछ कर नहीं पा रहे हैं। लेकिन ऐसा होता नहीं हैं क्योंकि कुछ सेखने की कोई उम्र नहीं होती। जब आँख खुल जाएँ तभी सवेरा माना जाता है। इसी कहावत को सच करके दिखा रही हैं महाराष्ट्र के एक गाँव की महिलाएं। महाराष्ट्र के ठाणे के फागणे गांव में एक ऐसा स्कूल है जहां बुजुर्ग महिलाएं। इतना ही नहीं इस स्कूल में पढ़ने वाली हर स्टूडेंट की उम्र 50 साल है।

इस स्कूल की सभी महिलाओं को योगेन्द्र बांगर एक शिक्षक के रूप में पढ़ाते हैं। योगेन्द्र बताते हैं कि ‘यहां पढ़ने वाली हर महिला को एक पेड़ की देखभाल करनी होती है। स्कूल के प्रवेश ‘गेट’ पर हिंदी वर्णमाला दिखाई देती है। ताकि महिलाएं समझ सकें कि वहां वे पढ़ने आई हैं।

इस स्कूल की यूनिफॉर्म भी है स्कूल में ध्यान लगाकर पढ़ रही हैं बुजुर्ग महिलाएं। 55 से 90 साल तक की बुजुर्ग महिलाओं को पढ़ा रही हैं टीचर शीतल मोरे। यह बुजुर्ग महिला बताती हैं की ‘मैं अब जानती हूं कि मुझे मेरा नाम कैसे लिखना है। हस्ताक्षर कैसे करने हैं।

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