मेला कमेटी अध्यक्ष मदन सिंह सोलंकी ने बताया कि 65 साल से चली आ रही इस परंपरा के तहत बंदूक की गोलियों से रावण को छलनी करने के लिए 20 से 60 साल के 10 से 12 निशानचियों ने अपने हाथ आजमाते है। इस दौरान निशानचियों ने 5 से 10 राउंड फायर करते। इसमें से कई निशाने रावण के चेहरे पर लगे जिससे मटके से बने सिर से रंग बाहर निकल आता है। रावण के सिर से रंग की धारा बह निकलने के बाद देवनारायण भगवान के निशान से रावण के सिर को धड़ से अलग किया जाता है।
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