राधा के जाने के बाद मुझे निगरानी में एक कमरे में रखा गया था। जगदीश दरवाजे पर खड़ा होकर रखवाली करता था और पल्ला की पत्नी सुमन मेरे ऊपर ऑर्डर चलाती थी। वहां आजादी से सांस लेना मुश्किल हो गया था। मुझे बाहर आने-जाने की इजाजत नहीं थी। वहां 20 दिन तक मुझे रखा गया, फिर एक दिन जबरदस्ती जगदीश, पल्ला और सुमन कोर्ट लेकर गए। वहां विवेक (परिवर्तित नाम) नामक व्यक्ति आया। तीनों ने उससे बात की, फिर मुझसे एक कागज पर हस्ताक्षर कराकर विवेक को कहा कि ये आपकी बीबी है, अब इसे घर लेकर चले जाओ।

जब मैं विवेक के साथ उसके घर गई तो उसने मुझे बताया कि शादी करने के लिए लड़की नहीं मिल रही थी। चारों दलालों को तुमसे शादी करने के लिए मैंने 60 हजार रुपए दिए हैं। अब तुम्हें यहीं रहना है। यह सुनकर मेरे होश उड़ गए। मुझे घर वालों की याद आई और मैं रोने लगी, तब विवेक ने मेरे घर वालों से बात कराई। उसकी मां सुषमा ने मेरी जान बचाई। उसने बेटी की तरह रखा। 24 जनवरी को मेरी मां ने थाने में जाकर मैडम को यह जानकारी दी। उसके बाद पुलिस टीम करौली आकर मुझे साथ लेकर रायपुर आ गई।

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