गर्मियों का मौसम आ गया है। गर्मियों के साथ ही आम का मौसम शुरु हो गया है। बाजारों में हर और आम दिखने लगे है। लेकिन क्या आपको मालूम है इन आमों को खाना आपकी सेहत के लिए खतरनाक भी हो सकता है। क्योंकि ये जो बाजार में धड़ल्ले से आम बिक रहे है ये कृत्रिम तरीके से पकाए गए है।
इन्हें लेकर कई नियम-कानून बनाए गये लेकिन इन सबके बावजूद देशभर में कैल्शियम कार्बाइड से पकाए गए आमों की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है। गुरुवार को गुजरात हाई कोर्ट ने कार्बाइड द्वारा पकाए गए आमों से लोगों की सेहत को होने वाले नुकसान का संज्ञान लिया। साथ ही राज्य सरकार को केमिकल से फल पकाने वालों खासतौर पर आम पकाने वालों के खिलाफ सख्त ऐक्शन लेने का आदेश दिया। केवल गुजरात ही नहीं बल्कि पूरे देश में आम व्यापारी आमों को पकाने के लिए कार्बाइड का प्रयोग कर लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
हालांकि कार्बाइड से पकाए गए आमों को चेक करने और दोषियों के खिलाफ ऐक्शन लेने के लिए उचित कानून हैं, लेकिन जैसा कि अधिकतर मामलों में देखने को मिलता है, इस मामले में भी कानूनों के पालन का घोर अभाव है।
अहमदाबाद मिरर की पड़ताल में सामने आया है कि पिछले 5 साल में आधिकारिक स्तर पर 29,560 किलो कर्बाइड से पके आमों को नष्ट किया गया है। साथ ही अमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने 205 किलो कार्बाइड को सीज किया है। साथ ही अथॉरिटी द्वारा दोषियों पर 4,69,400 रुपये का फाइन भी लगाया गया है। सबके बावजूद किसी आरोपी ट्रेडर को गिरफ्तार नहीं किया गया। बार-बार नियमों के उलंघन के बावजूद किसी आरोपी व्यवसायी को ब्लैकलिस्ट तक नहीं किया गया है। वर्ष 2011 के फूड सेफ्टी रेग्युलेशन के अनुसार, कैल्शियम कार्बाइड और एथिलीन गैस से पकाए गए फलों को कैंसर जैसी बीमारी का कारण बताते हुए इनकी बिक्री पर रोक लगा दी गई।
नवभारत टाइम्स की खबर के अनुसार, इस सबके बावजूद लोगों की सेहत के लिए घातक कैल्शियम कार्बाइड का सैशे मार्केट में मात्र 3 रुपये की कीमत में बिक रहा है। यह पाउडर हमारी सेहत के लिए इस कदर हार्मफुल है कि यह हमारा पूरा नर्वस सिस्टम खराब कर सकता है और गैस्ट्रिक परेशानियों का कारण बन सकता है। वहीं अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (एएमसी) का कहना है कि सीज किए गए आमों में लैब टेस्ट के दौरान कैल्शियम कार्बाइड की प्रजेंस प्रूव कराने में दिक्कत आती है। वहीं एथिलीन गैस वाष्पशील होती है। इसलिए इसके जरिए पकाए गए आमों में भी इसकी पुष्टि कराने में दिक्कत होती है।