आपको शायद पता नहीं हो कि किन्नरों का जननांग जन्म से लेकर मृत्योपरांत एक जैसा ही रहता है। यूं कहें कि इनके जननांग कभी विकसित नहीं होते। किन्नरों के अंदर अलग-अलग गुण पाए जाते हैं। इनमे पुरुष और स्त्री दोनों के गुण एक साथ पाए जाते हैं। इनका रहन-सहन, पहनावा और काम-धंधा भी इन दोनों से भिन्न होता है। आपको बताते चलें कि आज से नहीं सदियों से किन्नरों के जन्म की परंपरा चलती आई है।
ज्योतिष शास्त्र की मानें तो बच्चे के जन्म के वक्त उनकी कुंडली के अनुसार अगर आठवें घर में शुक्र और शनि विराजमान हो और जिन्हें गुरु और चंद्र नहीं देखता है तो व्यक्ति नपुंसक हो जाता है और उसका जन्म किन्नरों में होता है। क्योंकि कुंडली के अनुसार शुक्र और शनि के आठवें घर में विराजमान होने से सेक्स में प्रजनन क्षमता कम हो जाती है। किन्नरों के पैदा होने पर ज्योतिष शास्त्र का मानना है कि चंद्रमा, मंगल, सूर्य और लग्न से गर्भधारण होता है। जिसमें वीर्य की अधिकता होने के कारण लड़का और रक्त की अधिकता होने के कारण लड़की का जन्म होता है। लेकिन जब गर्भधारण के दौरान रक्त और विर्य दोनों की मात्रा एक समान होती है तो बच्चा हिजड़ा पैदा होता है।
वहीं किन्नरों के जन्म लेने का एक और कारण माना जाता है। जिसमें कई ग्रहो को इसका कारण बताया गया है। शास्त्र की अगर मानें तो किन्नरों की पैदाइश अपने पूर्व जन्म के गुनाहों की वजह से होती है। पुराणों की बात करें तो किन्नरों के होने की बात पौराणिक कथाओं में भी है। पौराणिक कथाओं को अगर माने तो अर्जुन की भी गिनती कई महीनों तक हिजड़ो मे की जाती थी।