अक्सर आपने वो कहावत सुनी होगी कि लोग उगते सूरज को सलाम करते हैं। या फिर एक और कहावत कि मंज़िल वे ही पाते हैं जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से नहीं हौसलों से उड़ान होती है।” ये दोनों लाइने महाराष्ट्र के इस नेत्रहीन श्रीकांत के जीवन पर एक दम सटीक बैठती हैं। अपनी शारीरिक विकृति के बावजूद भी श्रीकांत ने दिखा दिया कि दुनिया में कोई भी काम करना असंभव नहीं है। आज हम आपको श्रीकांत की जिंदगी से रूबरू करवाएँगे जो आज पूरे 50 करोड़ की एक बैल्ट फ़ैक्टरी के अकेले मालिक है। आपको एक बात और बता दें कि श्रीकांत एक बहुत गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। इनके माता-पिता की सालाना आय केवल 20000 रुपए है।

दरअसल श्रीकांत बिना आँखों के पैदा हुआ था। इसलिए गाँव के लोगों ने उसे मनहूस मानकर उसके माता-पिता को उसका गला दबाकर मार डालने का सुझाव दिया। लेकिन भला अपनी औलाद को इतनी बेरहमी से कोई बाप कैसे मारता। श्रीकांत के मां बाप ने उसे पढ़ा-लिखाकर समाज के सामने एक नई मिसाल पेश करने का फैसला लिया। किशोरावस्था में पहुंचते- पहुंचते उसे समाज के दोहरे मापदड़ों का सामना हर मोड़ पर करना पड़ा। लेकिन उसने कभी हिम्मत नहीं

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