अपने जीवन को परिभाषित करते हुए श्रीकांत कहते हैं कि ‘मुझे लगता है मैं दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान हूं. मैं ऐसा इसलिए नहीं कह रहा कि मैं आज लखपति हूं बल्कि मेरे माता-पिता की कमाई सालाना 20 हजार रुपए थी। उन्होंने बेशक मुझे कोई सुझाव नहीं दिया लेकिन मैं उनसे मिले प्यार और स्नेह से हमेशा ही ऊपर उठता रहा हूं। मेरे लिए वो दुनिया के सबसे अमीर लोग हैं।’

अपने बचपन के दिनों के अनुभव बाटंते हुए श्रीकांत कहते हैं कि ‘मुझे क्लास में बैठने के लिए सबसे पीछे वाला बैंच दिया जाता था। मुझे खेल-कूद से भी दूर रखा जाता था।  शायद हमारे गांव का माहौल ही ऐसा था जिसमें सामान्य से अलग तरह के लोगों से मेल-जोल रखना सही नहीं माना जाता था। वहीं दसवीं क्लास में मेरी न देख पाने की अक्षमता की वजह से मुझे विज्ञान विषय नहीं दिया गया।

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