कमिटी का कहना है, ‘एक आम भारतीय के नजरिए से स्थिति की समीक्षा करने की जरूरत है। इसके लिए यह देखना होगा कि डिजिटल होने का क्या कारण है। कई कमियों के बावजूद कैश के इस्तेमाल से तुरंत सेटलमेंट होता है और इसके साथ जीरो ट्रांजैक्शन कॉस्ट का भ्रम रहता है। कमिटी का कहना है कि बोर्ड फॉर रेग्युलेशन ऐंड सेटलमेंट सिस्टम्स को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के ओवरऑल स्ट्रक्चर के अंदर स्वतंत्र कानूनी दर्जा दिया जा सकता है और इसका नाम पेमेंट्स रेग्युलेट्री बोर्ड किया जा सकता है।
अभी यह RBI के सेंट्रल बोर्ड की एक सब-कमेटी के तौर पर काम करता है। पैनल ने सुझाव दिया है कि मोबाइल नंबर और आधार आधारित पूरी तरह से इंटर ऑपरेबल पेमेंट को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कमिटी का मानना है कि इन उपायों से देश में कैश के इस्तेमाल में आधी कमी हो सकती है।
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