लैटिन अमरीका के गैलेपैगोस द्वीप पर पाया जाने वाला कछुआ भी यही करता है। अपने शरीर के भीतर पानी जमा करता है। बारिश के मौसम में पत्तियों से पानी लेकर वो शरीर के भीतर एक थैली में जमा कर लेता है। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया में पाया जाने वाला एक मेंढक अपने मुंह के पास एक थैली में पानी इकट्ठा करके रखता है। इस थैली में ये मेंढक अपने वज़न से दोगुना तक पानी जमा कर लेता है। फिर ये पांच सालों तक बिना पानी पिए काम चला सकता है।
वहां पर इस टोड की चमड़ी से एक कैमिकल रिसता है। इससे उसके बदन के ऊपर एक परत सी चढ़ जाती है। ये टोड ऐसे ही क़रीब दस महीने तक ज़मीन के भीतर छुपा रहता है। बारिश की आहट मिलते ही ये अपनी जगह से बाहर निकलता है। पेड़ों पर रहने वाले कुछ मेंढक भी इसी तरीक़े से पानी की कमी से निपटते हैं।