फिर अपनी दादी के पास रहने के लिए चले आए। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। 2001 में चलती ट्रेन पकड़ने की कोशिश में फिसल गए और उनका पैर ट्रेन के पहियों के नीचे आ गया। लोगों ने ढाका मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती करवा दिया। लेकिन डॉक्टर उनके पैर बचा नहीं पाए। घर वालों ने भी उनके बार में जानने की कोशिश नहीं की। जब इलाज पूरा हो गया तो रेल अधिकारियों ने उन्हें अनाथालय छोड़ दिया। एक दिन वो अनाथालय से भी भाग निकले।
भीख मांग कर अपनी जिंदगी काटनी शुरू कर दी। कुछ लोगों ने उन्हें एक एनजीओ में भेज दिया जहां उन्हें व्हीलचेयर दिया गया। लेकिन अब्दुल्ला बिना किसी सहारे के चलना चाहते थे।