वो बताते हैं कि ‘मुझे डर था कि कहीं मुझे अपनी पूरी जिंदगी व्हीलचेयर पर ही न गुजारनी पड़े इसलिए मैंने इसके बिना चलने का फैसला किया।’ इसी बीच उनकी मुलाकात फुटबॉल के एक कोच से हुई। कोच ने उन्हें फुटबॉल खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। अपने लगातार अभ्यास और मेहनत के दम पर आज वो शानदार फुटबॉल खेलते हैं। अब्दुल्ला ने कहा कि लोग हैरान हो जाते है जब वे मुझे फुटबॉल खेलते देखते हैं।
उन्हें आश्चर्य होता है कि कैसे मैं बिना पैरों के साथ फुटबॉल खेल लेता हूं। लेकिन मैंने उन्हें दिखा दिया है। अब मैं भयभीत नहीं हूं। मैं किसी भी खिलाड़ी के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार हूं। मुझे लोगों के द्वारा अपने कौशल पर टिप्पणी सुनना अच्छा लगता है।