गुजरात की रहने वाली दनिबेन मकवाना ने 30 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने पति को खो दिया था। अपने तीनों बेटों की शादी में उनकी जाति के लोगों ने उन्हें किसी भी मांगलिक काम में हिस्सा लेने से मना कर दिया, लेकिन अपनी बेटी की शादी में उन्होंने सालों से चली आ रही इस दकियानूसी प्रथा को अंत करने का पहला मज़बूत कदम उठाया। इसके लिए वो ख़ुद भी तैयार नहीं थीं, पर बाद में उन्होंने बेटी का कन्यादान करने का फ़ैसला किया।
कितनी अजीब बात है न, एक औरत को समाज से इसलिए बहिष्कृत किया जाता है क्योंकि उसने अपना पति खो दिया? ताउम्र उसकी पहचान उसके पति से होती है और उसके जाने के बाद भी वही उसकी पहचान बन कर रह जाती है।
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