लेकिन उनकी जलती आंखें और गले की खुजली उन्हें किसी बड़े हादसे के लिए आगाह कर रही थी। वो भाग कर अपने सीनियर्स के पास पहुंचे और ट्रेन को वक़्त से पहले खोलने का अनुरोध किया। ऐसा करना गलत था। लेकिन कुछ भी होने पर वो सारी गलती खुद की मानने को तैयार थे, जिसे देख उनके सीनीयर्स ने ट्रेन वक़्त से पहले खोलने का आदेश दे दिया।
जैसे ही ट्रेन वहां से निकली, भोपाल के हालात बद-से-बदतर हो गए। स्टेशन पर लोगों की भीड़ आने लगी। हर कोई शहर छोड़ कर भागना चाह रहा था। लेकिन एक भी ट्रेन नहीं आने वाली थी। ग़ुलाम जी ड्यूटी पर ही रहे, ये जानने के बाद भी कि उनका परिवार भी गैस कांड का शिकार हो सकता है।