आपने फिल्मों और टीवी में देश की राजधानी दिल्ली के लिए एक बात जरूर सुनी होगी, कि यह दिल वालों का शहर है यानी दिल वालों की दिल्ली। लेकिन अगर आप कभी यहां आए होंगे तो आपने क्या महसूस किया होगा या जिन दूसरे शहरों के लोग यहां रह रहे हैं उनका क्या मानना है, इसे हमें अलग से बताने की जरूरत नहीं है। इस शहर में हर दिन लगभग 20,000 लोग आते हैं। हर कोई बस सुबह से शाम तक भाग रहा है। यह शहर बहुतों को रोजगार देता है और हर कोई पैसे कमाने में लगा है। लेकिन हाल ही में कुछ ऐसा हुआ जिससे यह साफ हो जाता है कि इस शहर में कुछ दिल वाले लोग अभी भी बचे हुए हैं।
देबेंद्र कापड़ी 24 साल के हैं और दिल्ली में टैक्सी चलाते हैं। यह बिहार के एक छोटे से इलाके से आते हैं। कुछ समय पहले इनके परिवार ने इनकी दो बहनों की शादी के लिए कर्ज लिया। शादी हो गई, लेकिन कर्ज का ब्याज बढ़ता गया। रकम 2 लाख तक पहुंच गई। इनके परिवार ने अपनी जमीन बेच दी। इसके बाद देबेंद्र ने अपना घर छोड़ने का निर्णय लिया और वो दिल्ली आ गए।
दिल्ली आकर उन्होंने कैब चलानी शुरू की। देबेंद्र एक छोटे से कमरे में रहते हैं और उसी में खाना बनाते हैं। उनके पास सोने के लिए कोई बिस्तर भी नहीं, वो जमीन पर ही एक दरी बिछा कर उसपर सो जाते हैं। कुलमिलाकर देबेंद्र कम से कम संसाधनों में अपना गुजारा कर रहे हैं। फिलहाल वो अधिक से अधिक पैसा अपने घर भेज देते हैं।
हम उसी कैब ड्राईवर की बात कर रहे हैं जिसे कुछ समय पहले अपनी कैब में करीब 8 लाख रुपये का सामान मिला था। वो चाहते तो उसे लेकर अपने गांव चले जाते, उनके ऊपर अभी भी करीब 70,000 रुपये का कर्ज था। लेकिन उन्होंने यह तय कर लिया था कि वो चोरी नहीं करेंगे। वो कहते हैं कि उनके माता-पिता ने उन्हें कभी गलत काम करना नहीं सिखाया। उन्होंने वह बैग पुलिस को सौंप दिया और इस बात की पुष्टि भी की, कि यह बैग उसके मालिक तक सही-सलामत पहुंच जाए।
यह बैग कश्मीर के मुबीशर वानी का था। मुबीशर अमेरिका जाने के लिए अपना वीजा हासिल करने दिल्ली आए थे और पहाड़गंज में रुके हुए थे। देबेंद्र ने बैग में पड़े शादी के एक कार्ड से मिले नंबर पर जब फोन किया तब उन्हें पता चला कि यह बैग असल में किसका है। पुलिस ने भी मुबीशर की पहचान करवा कर ही उनको बैग सौंपा। बात यहीं खत्म हो गई। लेकिन देबेंद्र कापड़ी मशहूर हो गए। जल्द ही वो सुर्खियों में आ गए और हर कोई उनकी ईमानदारी की तारीफ कर रहा था। लेकिन रेडियो मिर्ची के आर जे नावेद ने देबेंद्र के लिए कुछ करने की सोची।
नावेद ने दिल्ली वालों को बताया कि देबेंद्र पर अभी भी 70,000 रुपये का कर्ज है। उन्होंने कहा कि देबेंद्र को उनकी ईमानदारी का फल जरूर मिलना चाहिए। उन्होंने दिल्ली वालों से आग्रह किया कि वो देबेंद्र का कर्ज चुकाने में उनकी मदद करें। अगले 24 घंटों में ही करीब 70,000 रुपये की रकम इकठ्ठा हो गई। फिर देखते-देखते यह आंकड़ा 90,000 को पार कर गया। देबेंद्र बहुत खुश हैं और उन्होंने उन सभी लोगों का शुक्रिया अदा किया है जिन्होंने उनका कर्ज उतारने के लिए पैसे दिए।
इस तरह की घटनाओं से पता चलता है कि अगर आपने अपने जीवन में कुछ भी अच्छा किया है या किसी की मदद की है तो वो कभी बेकार नहीं जाता। आप चाहे ईश्वर में विश्वास करें न करें पर यह बात तो आप भी मानते होंगे कि कर्म ही व्यक्ति के जीवन को निर्देशित और निर्धारित करता है। दिल्ली ने भी साबित कर दिया कि उसका दिल वाकई बहुत बड़ा है।