पत्नी ब्रेन डेड थी, पति को लेना था बड़ा निर्णय, आखिरकार इंसानियत जीत गई , इंदौर में पत्नी का लगातार तीन दिन तक आंखों के सामने मृत अवस्था में देखना पति के लिए पल पल तकलीफ को बढ़ाने वाला था। फिर भी जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे लोगों की खातिर पति ने अपने दर्द भूलाकर तीन लोगों के जीवन को तवज्जो दी। शनिवार देर रात तकनीकी दृष्टि से पत्नि के ब्रेनडेड घोषित होने के बाद रविवार को 32 वर्षीय महिला के लिवर, किडनी दान किए गए। रविवार को शहर में बीसवा अंगदान हुआ। मंडलेश्वर निवासी 32 साल की अनामिका जैन के लिवर, किडनी, त्वचा व आंख दान किए गए। दरअसल अनामिका और उनके पति जितेंद्र के जीवन में बीते सोमवार को बेटी के रूप में खुशियां आयी थी लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। सिजेरियन डिलीवरी के दौरान मां की हालत नाजुक होती गई। गुरूवार को 32 वर्षीय मां को डॉक्टरों ने ब्रेनडेड घोषित कर दिया।

चार दिन की मासूम के साथ बेबस पिता ने इस कठिन समय में भी समाज के जरूरतमंद लोगों का ध्यान रख पत्नी के अंगदान का फैसला लिया। गुरूवार से शनिवार सुबह तक अनामिका को ऑर्गन डोनेशन एक्ट के तहत ब्रेन स्टेम डेड प्रमाणित नहीं किया जा सका था। इस दौरान मुस्कान ग्रुप के सदस्य, चोइथराम अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा लगातार परिजन को हिम्मत बंधाई। आखिरकार शनिवार रात प्रमाणित होने के बाद रविवार सुबह साढ़े 10 बजे लिवर, किडनी दान हो सके।

इधर चोइथराम अस्पताल में ही 35 वर्षीय संजय शुक्ला को लिवर ट्रांसप्लांट किया गया। जैसे ही अनामिका का शव ओटी से बाहर निकाला गया संजय की मां हाथ जोड़े वहीं खड़ी थी। वह अनामिका और उसके पति को देख रो पड़ी। वह इतना ही बोल सकी कि ये बच्ची जाते जाते मेरे बेटे को जीवन देकर जा रही है। संजय दो साल से लिवर की गंभीर बिमारी से पीड़ित है। लिवर ट्रांसप्लांट डॉ.अजय जैन की टीम द्वारा किया गया। उधर किडनी ट्रांसप्लांट के लिए एक ग्रीन कॉरिडोर सीएचएल और दूसरा बांबे अस्पताल के लिए बनाया गया। एक किडनी शाजापुर निवासी 45 वर्षीय बाणसिंह डोडिया व 35 वर्षीय ममता भट को ट्रांसप्लांट की गई।

चार दिन से पति जितेंद्र हर पल पत्नि के फिर जी उठने की उम्मीद में चोइथराम अस्पताल में बैठा था। आखिरकर ब्रेनडेड प्रमाणित होने के बाद उसकी उम्मीद टूट गई। अंग निकालने के लिए ऑपरेशन थिएटर में ले जाते वक्त पति ने पत्नी के सिर पर हाथ रखकर कहा कि तु बच्चों की चिंता मत कर। मैं दोनों को बहुत अच्छे से संभालूंगा। बस तु हमेशा जिंदा रहना।

अनामिका ठिकरी में मप्र डे आजीविका मिशन के तहत पंचायत में शासकीय नौकरी में थी। जबकि जितेंद्र जैन प्रायवेट नौकरी करते है। डिलेवरी के बाद से ही महिला की हालत खराब थी लेकिन शैल्बी अस्पताल में पहुंचने तक वह बेटी को देखने और उसे छूने की इच्छा जाहिर करती रही। यहां अस्पताल में वेंटीलेटर पर होने के कारण बेटी को नहीं देख पायी। परिजन दीपक जैन ने बताया कि जितेंद्र ने विपरित परिस्थिति में जो कदम उठाया है उससे जैन समाज में सकारात्मक संदेश जा रहा है।

 

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