टेलीकॉम पोर्टल Themobileindia.com पर इंडस्ट्री के सूत्रों का हवाला देते हुए 2012 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 90 लाख से ज्यादा लोग अपने मोबाइल फोन पर वयस्क मसाले को डाउनलोड करते हैं और उसका लुत्फ उठाते हैं। फरवरी 2013 में मैसूर स्थित‘मॉरल कांशियसनेस’ ग्रुप ने कॉलेज में पढऩे वाले 964 छात्रों का करीब सालभर तक सर्वे करने के बाद पाया कि 75 प्रतिशत अंडरग्रेजुएट छात्रों ने नियमित रूप से पोर्न सामग्री को देखा है।
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इस अध्ययन में पाया गया कि लड़के मोबाइल फोन पर एडल्ट कंटेंट देखने में लड़कियों के मुकाबले छह गुना आगे हैं। भले ही यह विश्वसनीय न लगे लेकिन 90 लाख भारतीय पोर्न को डाउनलोड करने के लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं और पोर्न मटीरियल हासिल करने के लिए हर साल औसतन 5,500 रु. खर्च करते हैं। अप्रैल, 2013 में इंदौर के एक वकील कमलेश वासवानी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की इसमें मांग की गई है कि एक ऐसा कानून बनाया जाए जिसमें पोर्नोग्राफी देखने को गैर-जमानती अपराध माना जाए।
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बच्चों के सामने 20 करोड़ से ज्यादा पोर्न वीडियो और हिंसक, निर्मम और विध्वंसक सामग्री की क्लिप उपलब्ध हैं। ये चीजें इतनी बड़ी संख्या में पहले कभी नहीं थीं। महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर अमेरिका के ऑनलाइन रिसोर्स सेंटर वीएडब्लूनेट पर जुलाई 2004 में रॉबर्ट जेनसन के रिसर्च पेपर में बताया गया कि सभी उपलब्ध अध्ययन 1970 के दशक में पोर्नोग्राफी की स्त्रीवादी आलोचना का समर्थन करते हैं और कहते हैं कि यह महिलाओं और बच्चों के लिए घातक है।