दरअसल परंपरा के अनुसार मंदिर को 25 साल वाले गांव के सभी नौजवान पकड़ कर खड़े होते हैं। मंदिर के ऊपर 42 साल की उम्र वाले नौजवान खड़े होते हैं। इन पर मंदिर को बचाने की जिम्मेदारी होती है, तभी ढोल नगाड़ों की थाप, रौशनी बिखेरती कंदीली और आतिशबाजी के बीच बाकी गांव वाले मंदिर को जलाने की कोशिश करने लगते हैं। नौजवानों की तमाम कोशिशों के बावजूद जिसे जो भी चीज मिली उससे मंदिर को आग के हवाले कर दिया जाता है।

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